उत्तराखंड राज्य का निर्माण 9 नवंबर 2000 को हुआ था। इसका मुख्य कारण उत्तर प्रदेश के पहाड़ी और मैदानी क्षेत्रों के बीच प्रशासनिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और भौगोलिक असमानता थी।
उत्तराखंड राज्य निर्माण के प्रमुख कारण:
1. भौगोलिक असमानता
उत्तर प्रदेश का अधिकांश प्रशासन मैदानी इलाकों से संचालित होता था, जिससे पहाड़ी क्षेत्रों की उपेक्षा होती थी।
पहाड़ी क्षेत्रों की भौगोलिक दुर्गमता के कारण विकास की गति बहुत धीमी थी।
2. आर्थिक शोषण और संसाधनों का दोहन
पहाड़ों के प्राकृतिक संसाधनों (जंगल, खनिज, पानी) का दोहन तो होता था, लेकिन स्थानीय लोगों को इसका लाभ नहीं मिलता था।
पहाड़ी क्षेत्रों में उद्योगों और रोजगार के अवसर नहीं थे, जिससे युवाओं को पलायन करना पड़ता था।
3. राजनीतिक उपेक्षा
उत्तर प्रदेश सरकार में पहाड़ी नेताओं की संख्या बहुत कम थी, जिससे इस क्षेत्र की समस्याओं को गंभीरता से नहीं लिया जाता था।
सरकारी योजनाएं और बजट का अधिकांश भाग मैदानी क्षेत्रों पर खर्च होता था।
4. संस्कृतिक और सामाजिक कारण
पहाड़ी और मैदानी क्षेत्रों की भाषा, रहन-सहन, खान-पान और परंपराओं में बड़ा अंतर था।
स्थानीय लोग अपनी सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने के लिए अलग राज्य की मांग कर रहे थे।
5. अलग राज्य आंदोलन और बलिदान
1994 में खटीमा, मसूरी और मुजफ्फरनगर कांड में आंदोलनकारियों पर पुलिस ने गोलियां चलाईं, जिसमें कई लोगों की शहादत हुई।
उत्तराखंड आंदोलनकारियों ने लंबे संघर्ष के बाद अलग राज्य की मांग को और मजबूत किया।
राज्य निर्माण की प्रक्रिया
लंबे संघर्ष और आंदोलन के बाद उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000 पारित हुआ।
9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड भारत का 27वां राज्य बना।
निष्कर्ष
उत्तराखंड का निर्माण क्षेत्रीय असमानता, प्रशासनिक उपेक्षा, आर्थिक पिछड़ेपन और सांस्कृतिक अलगाव के कारण हुआ। यह आंदोलन सिर्फ एक राज्य निर्माण का संघर्ष नहीं था, बल्कि पहाड़ों की आत्मनिर्भरता और पहचान बनाए रखने की लड़ाई थी।
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